हटा दो

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तो फिर हटा दो वो झूठे लाज का घूंघट
वो तौर तरीकों के जाले
वो नज़ाखत वो अदाएं …
फिर ही तो मिल पाओगे मुझसे तुम
बेबाक , बेशरम, बिना झूठ बिना सच
बिना खुद के , बिना मेरे ।

फिर हटा देना वो सोच के दायरे
मैं क्या देखूंगा
क्या सोचूंगा
क्या कहूँगा
जब आना मुझसे मिलने
तो बस अपनी रूह लाना…
नंगी, अनछुई,
ना साफ़ ना मैली।