हटा दो

My Poems, Uncategorized

तो फिर हटा दो वो झूठे लाज का घूंघट
वो तौर तरीकों के जाले
वो नज़ाखत वो अदाएं …
फिर ही तो मिल पाओगे मुझसे तुम
बेबाक , बेशरम, बिना झूठ बिना सच
बिना खुद के , बिना मेरे ।

फिर हटा देना वो सोच के दायरे
मैं क्या देखूंगा
क्या सोचूंगा
क्या कहूँगा
जब आना मुझसे मिलने
तो बस अपनी रूह लाना…
नंगी, अनछुई,
ना साफ़ ना मैली।

4 thoughts on “हटा दो

  1. कवयित्री का मानवीय रिश्तो को एक अलग दृष्टिकोण से परिभाषित करना सराहनीय है

    Liked by 1 person

Leave a comment